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धारावाहिक प्रस्तुति (27 सितंबर 2019), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
मोहनदास करमचंद गांधी

द्वितीय खंड : 1. जनरल स्‍मट्स का विश्‍वासघात (?)

पाठकों ने हमारी आंतरिक मुसीबतों का थोड़ा दर्शन किया। उनका वर्णन करने में मुझे अधिकतर अपनी आत्‍मकथा ही देनी पड़ी। परंतु यह अनिवार्य था, क्‍योंकि सत्‍याग्रह से संबंधित मेरी मुसीबतें सत्‍याग्रहियों की भी मुसीबतें हो गई थीं। अब हम फिर से बाहरी मुसीबतों का विचार करें।

इस प्रकरण का शीर्षक लिखते हुए मुझे शर्म आई है और यह प्रकरण लिखते समय भी शर्म आती हैं, क्‍योंकि इसमें मानव-स्‍वभाव की वक्रता का वर्णन हुआ है। सन 1908 में भी जनरल स्‍मट्स दक्षिण अफ्रीका के सबसे होशियार नेता माने जाते थे। और आज वे सारी दुनिया में न सही परंतु ब्रिटिश साम्राज्‍य में तो ऊँची श्रेणी के कार्यकुशल पुरुष माने जाते हैं। उनकी महान शक्तियों और योग्‍यताओं के बारे में मुझे कोई शंका नहीं है। वे जितने कुशल वकील है उतने ही कुशल सेनापति हैं और उतने ही कुशल शासक हैं। दक्षिण अफ्रीका में दूसरे तो अनेक शासक आए और गए। परंतु सन 1907 से लेकर आज तक यह पुरुष दक्षिण अफ्रीकी सरकार की लगाम अपने हाथ में सँभाले हुए है। और आज भी ऐसा कोई पुरुष दक्षिण अफ्रीका में नहीं है, जो उनकी स्‍पर्धा में खड़ा हो सके। यह प्रकरण लिखते समय मुझे दक्षिण अफ्रीका को छोड़े 9 वर्ष हो चुके हैं। आज जनरल स्‍मट्स के लिए दक्षिण अफ्रीका किस विशेषण का प्रयोग करता है, यह मैं नहीं जानता। उनका अपना (क्रिश्चियन) नाम जेन है और दक्षिण अफ्रीका के लोग उन्‍हें 'स्लिम जेनी' के नाम से पुकारते हैं। यहाँ 'स्लिम' का अर्थ है 'छटक जाए ऐसा', 'पकड़ में न आए ऐसा'। गुजराती भाषा का (और हिंदी भाषा का) इससे मिलता-जुलता शब्‍द है 'धूर्त'; अथवा मीठा विशेषण काम में लें तो उलटे अर्थ में है 'चालाक'। अनेक अँग्रेज मित्रों ने मुझसे कहा था : ''जनरल स्‍मट्स से तुम सावधान रहना। वे बड़े घाघ हैं। उन्‍हें बदल जाने में देर नहीं लगती। उनके शब्दों का अर्थ वे ही समझ सकते हैं। वे प्रायः कुछ ऐसे ढंग से बोलते हैं कि दोनों पक्ष उनके शब्दों का खुद को प्रिय लगनेवाला अर्थ कर सकते हैं। इसके सिवा, मौका आने पर वे स्‍वयं दोनों पक्षों के अर्थ को एक ओर रखकर कोई तीसरा ही अर्थ बताते हैं, उस पर अमल करते हैं और उसके समर्थन में ऐसी चतुराई भरी दलील देते हैं कि दोनों पक्ष थोड़ी देर के लिए तो यही मानने लगते हैं कि उन्‍होंने अर्थ करने में भूल की होगी और जनरल स्‍मट्स अपने शब्दों का जो अर्थ करते हैं वही सच्‍चा है!'' इस प्रकरण में मुझे जिस विषय का वर्णन करना है उसे ...

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प्रथम हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन : अध्‍यक्षीय भाषण
मदन मोहन मालवीय

भारत के इतिहास के विभिन्‍न खंडों में इस बात के अनेक दृष्‍टांत हैं कि जिस काल में यूरोपीय देश अज्ञानता और क्रूरता में डूबे हुए थे, हमारे महान संत, महात्‍माओं ने राजकीय समर्थन से ऐसी बौद्धिक प्रधानता हासिल की थी जो किसी भी सभ्‍य राष्‍ट्र के लिए ईर्ष्‍या का विषय हो सकती थी। हमारे देश में एक ऐसे समाज का विकास हुआ था जिसने न केवल स्‍कूली शिक्षा, दर्शन और धर्म को ही बढ़ावा दिया, बल्कि कला, स्‍थापत्‍य कला, चिकित्‍सा विज्ञान, खगोल विज्ञान और इंजीनियरिंग को भी बढ़ावा दिया। किसी भी देश की शिक्षा पद्धति वहाँ की परंपराओं के अनुरूप विचारों और सोच से पोषित होनी चाहिए। भारत में पश्चिमी शिक्षा के बने रहने के पीछे मुख्‍य कारण सरकारी नौकरी का आकर्षण था। ज्ञान के प्रसार के लिए नहीं, बल्कि नौकरशाही व्‍यवस्‍था के सुचारु संचालन के लिए जरूरी रोजगार के अवसर खोलने के वास्‍ते शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। ...हमारे युवाओं को अपनी विरासत पर गर्व करना सिखाया जाना चाहिए। केवल इसी तरह से वे प्रगति में बाधक हीनता की भावना और आत्‍मविश्‍वास की कमी को दूर कर पाएँगे।

व्याख्यान
स्वामी विवेकानंद
मैंने क्‍या सीखा ?
वह धर्म जिसमें हम पैदा हुए

संस्कृति
रजनीश कुमार शुक्‍ल
गौरवशाली संस्कृति

साहित्‍य
कुँवर नारायण पर एकाग्र
प्रकाश चंद्र
कविता में इतिहास बोध और इतिहास बोध की कविता
पल्लवी प्रकाश
बाजार, उपभोक्तावादी संस्कृति और कुँवर नारायण की कविता

आलोचना
डॉ. इनु कुमारी
नागार्जुन के उपन्यासों में सामाजिक यथार्थ

साहित्यिक पत्रकारिता
प्रदीप त्रिपाठी
कल्पना पत्रिका का साहित्यिक योगदान

विशेष
ममता कुमारी
घरेलू महिला कामगार के बहाने कुछ बातें

कविताएँ
नमन जोशी

संरक्षक
प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल
(कुलपति)

 संपादक
प्रो. अवधेश कुमार
फोन - 9926394707
ई-मेल : avadesh006@gmail.com

समन्वयक
डॉ. अमित कुमार विश्वास
फोन - 09970244359
ई-मेल : amitbishwas2004@gmail.com

तकनीकी सहायक
रविंद्र वानखडे
फोन - 09422905727
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ISSN 2394-6687

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